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बर्फ ओढ़े मगन धरती जब बुलाती है।

बर्फ ओढ़े मगन धरती जब बुलाती है।

बर्फ ओढ़े मगन धरती जब बुलाती है।
शीत का संदर्भ पावन मुस्कुराता है।।


पहाड़ों की स्वेदिमा की हँसी का यौवन
खिलखिलाती वादियों की दृष्टि मनभावन।
नील जल सा कुल बुलाता गगन का आँगन
मुदित मन को प्यार से सहसा बुलाता है।।


सेव के बागान की लाली भले चुप है
और केशर क्यारियाँ भी कहाँ गुम सुम हैं ।
और चीड़ सुदीर्घ काय भी खड़ा होगा
क्षितिज-नभ की मित्रता सब को दिखाता है।।


ठिठुरते उन तरी गेहों को सँभाले है
झील का पानी सिकारों को खँघाले है।
बस्तियों में चिमनियों से उठ रहा 
धुआँचाय का प्याला मधुर मन गुनगुनाता है।।
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