राम नाम की चोरी

राम नाम की चोरी

रुपये पैसे गहने करते हो चोरी ,
राम नाम का भी चोरी कर लो ।
कर नहीं सकते अधिक किन्तु ,
फिर भी तुम तो थोड़ी कर लो ।।
चोरी होती है निर्धन के वर्ग में ,
नहीं मिल पाती कभी भी वाह ।
डकैत तो निज प्राण हैं गॅंवाते ,
चोर को मिलता जीवन में आह ।।
चोरी कर शांत चित्त नहीं होते ,
राम नाम ले चित्त कर लो शांत ।
मन मस्तिष्क स्वयं निर्मल होगा ,
मन से मिटेंगे तेरे सारे ही भ्रांत ।।
राम नाम की तुम कर लो चोरी ,
राम के नाम भी कभी न घटेंगे ।
राम नाम से तू रहमदिल बनेगा ,
तेरे जीवन भी ये शांति से कटेंगे ।।
अनाजों की भी करते हो चोरी ,
पकड़ाने पर तुम करते हो शर्म ।
नाना लोग बहुत कटु हैं सुनाते ,
क्या यही तेरा होता है बुरा कर्म ।।
राम का नाम चुरा ले तू दिल में ,
निज नाम रौशन कर जाएगा ।
बरसेगी कृपा ईश्वर का तुम पर ,
राम नाम से तू भी तर जाएगा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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