दूजा नहीं कबीर जगत में

दूजा नहीं कबीर जगत में 

दूजा नहीं कबीर जगत में पर, उससे बेहतर लाखों हैं,
समाज सुधारक समय समय पर, आते जाते लाखों हैं।
सीधी सच्ची कड़वी मीठी, तीखी बातें वह कहता था,
कोई उसका सार समझता, कोई उसको सहता था।
अपने अपने ढंग से सबने, अपनी अपनी बात कही,
रात गहन अमावस्या की, बस एक दीप की बात कही।
कलुषित मन का तम गहरा, नहीं ज्ञान के दीप जले,
तम आज भी सघन बना है, जाकर देखो दीप तले।
कस्तुरी निज घट के भीतर, बाहर उसको ढूँढ रहे,
अन्तर्मन में नहीं झाँकते, मन्दिर मस्जिद में ढूँढ रहे।
एक ही मिट्टी चाक एक है, एक ही हाथ सृजनकर्ता,
समय चाक पर चढ़कर चिलम, घट कोई बना करता।
एक आग में दोनों तप कर, काम जगत में आते,
सबका काम जुदा जुदा है, जग को यह बतलाते।
अच्छाई का महत्व तभी तक, जब बुरा कोई होता है,
सब ही अच्छे हो जायेंगे, अच्छे का महत्व नहीं होता है।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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