भारत की सभी लोकभाषाएँ पुण्य-सलीला सरिताएँ, जिनसे हिन्दी गंगा बनी :-डा अनिल सुलभ

भारत की सभी लोकभाषाएँ पुण्य-सलीला सरिताएँ, जिनसे हिन्दी गंगा बनी :-डा अनिल सुलभ

  • 'कपिल सिंह मुनि की स्मृति में आयोजित हुआ 'अंगिका महोत्सव', हुई बहुभाषा कवि गोष्ठी|
  • अंग-विभूति सम्मान' से विभूषित हुई अनेक विदुषियाँ एवं विद्वान ।

पटना, १७ दिसम्बर। 'अंगिका' समेत भारत की सभी लोक-भाषाएँ, पुण्य-सलीला सरिताएँ हैं, जिनसे 'हिन्दी' गंगा बनी है। 'संस्कृत' के गोमुख हिमनद से अपना स्रोत पाकर वह अनेक लोक-सरिताओं को ग्रहण और आत्म-सात करती हुई, अपने गात्र को विशाल बनाती हुई सागर में मिलती है और अपने मृदु-जल से समस्त विश्व में बंधुत्व और प्रेम का भाव भर रही है। हिन्दी के लोग सभी भारतीय भाषाओं के प्रति श्रद्धा से नत हैं।
यह बातें रविवार को 'सरोवर साहित्य परिषद' के तत्त्वावधान में, अंग-विभूति कपिल सिंह मुनि की जयंती पर, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित 'अंगिका महोत्सव' का उद्घाटन करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, मुनि जी संत प्रवृति के एक ऐसे साधु-पुरुष थे, जिन्होंने लगभग सौ वर्षों की आयु प्राप्त की और अपना सारा जीवन, विना किसी लिप्सा और अपेक्षा के, समाज की सेवा में अर्पित कर दिया। ऐसी विभूतियाँ हमें सदैव प्रेरणा और ऊर्जा प्रदान करती हैं। जिनका मन कलुष-रहित और कल्याण-कारी होता है, उनका जीवन लम्बा और सुखदायी होता है, उनकी मृत्यु भी पीड़ा-रहित होती है। ऐसे लोग सदा श्रद्धा-पूर्वक स्मरण किए जाते हैं ।
समारोह के मुख्य अतिथि और पूर्व केंद्रीय मंत्री डा सी पी ठाकुर ने कहा कि, साहित्य से समाज का कल्याण और उन्नयन होता है। सच्चे लोग कल्याणकारी होते हैं। कविता से दुखी मन को शांति मिलती है। मन को आनन्द पहुँचता है, जीने की शक्ति आती है। कपिल मुनि को हम इसी लिए याद करते हैं कि उन्होंने समाज से कुछ लिया नहीं, जीवन भर कुछ न कुछ देते रहे। डा ठाकुर ने स्वर्गीय मुनि पर प्रकाशित एक पुस्तिका का भी लोकार्पण किया।
भागलपुर से पधारे कवि डा कैलाश ठाकुर ने कहा कि 'अंगिका' का साहित्य भी समृद्ध हुआ है और बहुत कार्य भी हुए हैं, किंतु अभी तक यह सरकार की दृष्टि में उपेक्षित है। इसे भी अन्य भाषाओं की भाँति सम्मान मिलना चाहिए।
सरोवर साहित्य परिषद के अध्यक्ष डा आर प्रवेश की अध्यक्षता में आयोजित बहुभाषा कवि सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने मैथिली में भगवती की वंदना से किया। झारखंड से आए कवि डा प्रदीप प्रभात, डा कैलाश ठाकुर, पंकज कुमार सिंह, सरिता मण्डल तथा सूर्यदेव सिंह ने अंगिका में, श्याम बिहारी प्रभाकर ने मगही में, जय प्रकाश पुजारी ने भोजपुरी में, कवयित्री डा पुष्पा जमुआर, सुनीता रंजन, अर्जुन प्रसाद सिंह तथा डा कुंदन लोहानी ने हिन्दी में और शायरा तलत परवीन ने ऊर्दू में अपनी रचनाएँ पढ़ीं। डा आर प्रवेश ने सभी कवियों एवं कवयित्रियों को अंग-वस्त्रम और प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया।
अतिथियों का स्वागत डा राधेश्याम चौधरी ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन डा गौरी रानी ने किया। कवि डा मनोज गोवर्द्धनपुरी ने मंच का संचालन किया।इस अवसर पर, वरिष्ठ कवि डा मेहता नगेंद्र सिंह, प्रवीर कुमार पंकज, प्रियंका सिंह, नन्दन कुमार मीत, नवल किशोर सिंह, कुमारी अनुष्का,जीतन शर्मा, दिगम्बर जायसवाल, नागेन्द्र राय, सरिता कुमारी, अजय कुमार मण्डल, मानवेंद्र आलोक, डौली कुमारी, कुमार मेनका आदि अनेक सुधीजन उपस्थित थे।
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