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क्या कहते हैं पांच राज्यों के चुनाव परिणाम ?

क्या कहते हैं पांच राज्यों के चुनाव परिणाम ?

राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम राज्यों के चुनाव परिणाम आ चुके हैं। इन पांचो राज्यों में से सबसे बड़े तीन राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जिस प्रकार शानदार बहुमत लेकर भाजपा ने अपना प्रदर्शन किया है उससे स्पष्ट हो गया है कि 2024 का मैदान प्रधानमंत्री श्री मोदी अपने लिए सुरक्षित कर चुके हैं। अब उन्हें आने वाले लोकसभा चुनावों में रोकने वाला कोई नहीं होगा। उन्होंने 'अश्वमेध' का घोड़ा आज ही छोड़ दिया है। जो उन्हें लगातार तीसरी बार भारत का प्रधानमंत्री बनाने में सहायक होगा। निश्चित रूप से उनके अश्वमेध के घोड़े को अब कहीं रोका नहीं जा सकेगा। ऐसी मानसिकता और सोच को लेकर भाजपा इस समय बहुत उत्साहित है। वास्तव में यह उसके जीत के क्षण हैं और उसे अपना उत्साह और उत्सव दिखाने या मनाने का पूर्ण अधिकार है।
प्रधानमंत्री श्री मोदी ने सिद्ध किया है कि उनका नाम ही इस समय भारतीय लोकतंत्र में जनता के लिए सबसे बड़ी गारंटी बन चुका है । उन्होंने राजस्थान का चुनाव इस बार वहां के किसी स्थानीय नेता को आगे रखकर नहीं लड़ा बल्कि इस चुनाव को अपने सम्मान के साथ जोड़कर लोगों से सीधे अपने लिए वोट मांगे। वहां की जनता ने भी मोदी जी का सम्मान रखते हुए सीधे उनके प्रति अपना प्यार और सम्मान प्रकट किया और उन्हें इस बात का भरोसा भी दिला दिया कि 2024 में भी हम आपके साथ खड़े होंगे। याद रहे कि पिछले विधानसभा चुनाव के समय राजस्थान के लोगों ने 'मोदी जी से बैर नहीं, रानी तेरी खैर नहीं' कहकर भाजपा के स्थानीय नेतृत्व के प्रति अपनी नाराजगी दिखाते हुए प्रधानमंत्री के प्रति अपनी नरमदिली दिखाई थी। अब पीएम मोदी ने लोगों की इसी भावना को इस चुनाव में कैश कर लिया है और उनसे सीधा संवाद स्थापित कर उन्हें यह बता दिया है कि यदि कोई गलतियां स्थानीय नेतृत्व के कारण हुई हैं तो उन्हें लेकर मुझे दंडित न किया जाए। जनता ने प्रधानमंत्री की अपील को स्वीकार किया और कांग्रेस की कलहपूर्ण राजनीति को राजस्थान से विदा कर दिया।
यही स्थिति मध्य प्रदेश की रही है। वहां जिस प्रकार प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा सत्ता में लौटी है उसने यह स्पष्ट कर दिया है कि अभी मामा शिवराज से भांजे और भांजियों या लाडली बहनों का मोह भंग नहीं हुआ है। लोग प्रधानमंत्री मोदी जी और मामा शिवराज सिंह चौहान के साथ खड़े हैं। निश्चित रूप से यहां जिस प्रकार प्रचंड बहुमत शिवराज सिंह चौहान को मिला है वह स्पष्ट बता रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव के समय जनता बड़े स्तर पर प्रधानमंत्री के साथ खड़े होकर उन्हें अपना समर्थन देगी।
कांग्रेस के राहुल गांधी ने इन चुनावों में विशेष दिलचस्पी नहीं ली। उन्होंने राजस्थान में अपनी ही पार्टी के सचिन पायलट और अशोक गहलोत की कलह की आग में जलते राजस्थान को इन दोनों नेताओं की आपसी लड़ाई के हवाले कर दिया। पिछले पूरे 5 वर्ष वह अपने इन दोनों नेताओं में सुलह सफाई नहीं करवा पाए। दोनों का विवाद निरंतर बना रहा। जिसका प्रभाव शासन की नीतियों पर भी पड़ा और कांग्रेस के नेताओं के मनोबल को भी उसने तोड़कर रख दिया। राहुल गांधी समझ चुके थे कि वह अपने आप को एक कमजोर नेता के रूप में दिखाकर अब लोगों के सामने जाने के योग्य नहीं है। इसी प्रकार मध्य प्रदेश को उन्होंने पूर्णतया कमलनाथ के हाथों में सौंप दिया। यह उनकी बहुत बड़ी राजनीतिक भूल थी। उन्हें अपना दमखम दिखाना चाहिए था । पर वह दमखम दिखाने से इसलिए पीछे हट गए कि यदि दोनों राज्यों में इसके उपरांत भी वह अपनी सरकार नहीं बना पाए तो लोग इन राज्यों की हार का ठीकरा उनके सिर पर फोड़ेंगे। अपनी इस प्रकार की सोच को दिखाकर उन्होंने इन दोनों राज्यों में अपनी हार पहले ही स्वीकार कर ली थी। इसका एक कारण यह भी था कि उन्होंने राजस्थान की जनता से पिछले विधानसभा चुनाव में जिस प्रकार के वायदे किए थे उन्हें वह पूरा नहीं कर पाए थे । उन्हें डर था कि जनता उनसे सवाल पूछेगी और वह सवालों का जवाब नहीं दे पाएंगे। कुल मिलाकर उन्होंने अपने आप को 2024 के लिए स्थापित करने की बजाय पीछे हटा लिया। अब वह इंडिया गठबंधन के लिए भी अप्रासंगिक हो गए हैं और अपनी पार्टी के लिए भी वह अधिक 'उपयोगी' नहीं रह पाए हैं।
इंडिया गठबंधन के नेताओं ने अपने अहंकार और राजनीतिक स्वार्थ की कलई इसी समय खोल दी है। उन्होंने कांग्रेस का साथ नहीं दिया और अपने गठबंधन के एक महत्वपूर्ण घटक दल को चुनावों में अकेला ही छोड़ दिया। जबकि वह जानते थे कि 2024 की चुनावी बैतरणी को पार करने के लिए इन पांच राज्यों में इंडिया गठबंधन को जिताना आवश्यक है। पर वह ऐसा कर नहीं पाए। हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे इंडिया गठबंधन के नेता केवल इस आशा में थे कि सत्ता विरोधी लहर के चलते भाजपा सारे राज्यों में चुनाव हार जाएगी और इसी से उनकी 2024 के लोकसभा चुनावों की राजनीति खिल उठेगी। चुनाव परिणामों को देखकर इंडिया गठबंधन के बड़े नेता शरद पवार ने कहा है कि ऐसे चुनाव परिणाम की उन्हें उम्मीद नहीं थी। इससे पता चलता है कि उन जैसा नेता भी जनता के मन की बात समझ में मात खा गया है। अब इन चुनाव परिणामों के पश्चात इंडिया गठबंधन की दरारें और भी गहरी होंगी और हम देखेंगे कि 2024 के लोकसभा चुनावों से पूर्व कुछ 'नटखट बंदर' इधर से उधर भागते हुए दिखाई देंगे। यहां तक कि गठबंधन के घटक दल भी अपने गठबंधन का साथ छोड़ जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। इन चुनावों में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में भी लोगों ने भाजपा, कांग्रेस और तेलंगाना में बीआरएस के अतिरिक्त किसी को मुंह नहीं लगाया है। शर्मनाक स्थिति है कि किसी भी राज्य में कोई दूसरा दल अपना खाता तक खोल नहीं पाया है।
तीनों राज्यों के मतदाताओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह सत्ता स्वार्थ के लिए बनने वाले किसी भी 'ठगबंधन' की राजनीति में अब फंसने वाले नहीं हैं। क्योंकि केवल सत्ता के लिए चुनाव से पहले बनने वाले किसी भी गठबंधन का उद्देश्य राष्ट्रहित या जनकल्याण करना नहीं होता बल्कि उनका उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना होता है। इनका कोई चिंतन नहीं होता। कोई दर्शन नहीं होता। कोई सोच नहीं होती। कोई दिशा नहीं होती। यदि ऐसी परिपक्व सोच मतदाता ने दिखाई है तो यह निश्चय ही एक अच्छा संकेत है जिसे राजनीतिक दलों को समझना चाहिए। नेताओं को आरामतलबी की राजनीति को छोड़कर जनता के लिए काम करने की प्रवृत्ति पैदा करनी होगी। तुष्टिकरण के माध्यम से चलने वाली राजनीति के दिन अब लद चुके हैं। जनता जागरुक हो चुकी है और वह अब किसी भी प्रकार की रेवड़ियों के चक्कर में भी आने वाली नहीं है। लोग जागरुक होकर मतदान कर रहे हैं और प्रांतों में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी राष्ट्रीय मुद्दों को महत्व दे रहे हैं। इसलिए जाति आधारित जनगणना जैसे मुद्दों को भी जनता ने नकार दिया है। फिलहाल तीन राज्यों में मिली शानदार सफलता के लिए प्रधानमंत्री मोदी जी और उनकी पार्टी को हार्दिक शुभकामनाएं।
(लेखकडॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)
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