एकता , एकत्व , एकसूत्रता

एकता , एकत्व , एकसूत्रता

एक बनें हम नेक बनें हम ,
एकता ही मनुष्याधार है ।
नवविवेक व अभिषेक बनें ,
एकता में ही तो प्यार है ।।
बॅंध जाएं एकसूत्र में हम ,
अपना तो यह अधिकार है ।
मानव है विवेकशील होता ,
मानव ही तो मिलनसार है ।।
आपसी सहयोग है दायित्व ,
नहीं किसी के हम भार हैं ।
मुख से उगलें हम स्नेहवचन ,
सुमधुर निकलते ये उद्गार हैं ।।
दुश्मन जो कर दिया हमला ,
यहाॅं हम भी तो बैठे तैयार हैं ।
एकता का हमला चूके नहीं ,
एकता की होती पैनी धार है ।।
हम एक बनेंगे अखंड बनेंगे ,
मानवता का यह सूत्रधार है ।
तनमन से त्याग ईर्ष्या तकरार ,
एकता मानव का उपहार है ।।
माना एकता यह सरल नहीं है ,
किंतु एकता होता न पहाड़ है ।
कभी चींटियों को निकले देख ,
कितनी लंबी चलती कतार है ।।
चींटियाॅं देती ये उपदेश हमें है ,
एकता बिन जीवन में हार है ।
मानव होकर क्यों द्वेष है तुममें ,
किस आदत मानव लाचार है ।।
मानव का मानव से नहीं बनता ,
कैसा मानव का ये व्यवहार है ।
मन मस्तिष्क में बैठा है गंदगी ,
क्या मानव के यही आचार हैं ।।
माता पिता भाई बहन बेटियाॅं ,
भारत तेरा ही तो ये संसार है ।
एक एक से घूम भीक्षा माॅंगता ,
अरुण दिव्यांश लिए थार है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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