मां का आंचल मां की ममता ,
हर सुख देने का रखे क्षमता ।मानव दानव की विसात क्या ,
देव देवी कर सके न समता ।।
मां से ही संस्कार यह मिलता ,
मां से ही मिलता यह सम्मान ।
बढ़े पुत्र माता के ही कर्म से ,
मां की होती है बड़ी अरमान ।।
मां की महिमा बहुत निराली ,
मां की महिमा है बहुत महान ।
हो पुत्र का भला जैसे जिससे ,
मां करती उस पथ में पयान ।।
मां को सदा करता हूॅं नमन मैं ,
उनके चरणों में मेरा है वंदन ।
हे मात सदा तेरा है अभिनंदन ,
तेरी पद धूलि लगा लूॅं चंदन ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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