बचपन
जीवन का असली स्वर्णकाल,शैशव ही केवल कहलाता।
दुनिया बच्चों को बहलाती,
बच्चा दुनिया को बहलाता।।
बच्चा जब बड़ा हुआ अक्सर,
जीवन भी बोझिल हो जाता।
दुर्लभ पाने की लालच में,
सब मिला हुआ भी खो जाता।।
बस यही सोचकर बचपन को,
छककर जीयो शुचि मस्ती में।
घर से पड़ोस से आगे तक,
किलकारी गूंजे बस्ती में।।
अक्कड़ बक्कड़ छुपा छुपाई,
आइस बाइस और कबड्डी,
गुल्ली डंडा कंचा खोखो,
खेलो राजा चोर फिसड्डी।।
यह नहीं लौटकर आया है,
फिर नहीं लौटकर आएगा।
जीवन का यह राजस बचपन,
जीवन भर तुम्हें लुभाएगा।।
डॉ अवधेश कुमार अवध
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