घूम रही आवारा सड़कों पर

घूम रही आवारा सड़कों पर

घूम रही आवारा सड़कों पर, जिसको माँ हम कहते,
वृद्धाश्रम में रहने को श्रापित, जिसको माँ हम कहते।
हुई मोहताज टूकडे टुकड़े को, द्वारे- द्वारे भटक रही,
अपनों की बेरूखी से कटती, जिसको माँ हम कहते।


जिसने माँ को छोड़ा सड़कों पर, वह निर्लज्ज पापी है,
कर्ज दूध का भुला दिया जिसने, वह निर्लज्ज पापी है।
कुलघाती वह हत्यारा सम, नरक भोग का अधिकारी,
अधर्मी दुष्ट जिंदा भी मरा हुआ, वह निर्लज्ज पापी है।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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