मन, विचार, वाणी एवं कर्म में सामंजस्य
प्रिय मित्रों मन, विचार, वाणी एवं कर्म मानव जीवन के चार आधार स्तंभ हैं। इनमें से किसी एक में भी असंतुलन होने पर व्यक्ति का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। मन, विचार, वाणी एवं कर्म का सामंजस्य व्यक्ति को एक सफल और संतुलित जीवन जीने में मदद करता है।
जब मन, विचार, वाणी एवं कर्म में सामंजस्य होता है, तो व्यक्ति का मन हमेशा सकारात्मक विचारों से भरा रहता है। उसके विचारों से वाणी शुद्ध और मधुर निकलती है, और उसके कर्मों से दूसरों का भला होता है। ऐसे व्यक्ति को समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है।
जब मन, विचार, वाणी एवं कर्म में असंतुलन होता है, तो व्यक्ति का मन हमेशा नकारात्मक विचारों से भरा रहता है। उसके विचारों से वाणी कठोर और कर्कश निकलती है, और उसके कर्मों से दूसरों का नुकसान होता है। ऐसे व्यक्ति को समाज में अपमान और बदनामी मिलती है।
मन वह है जो हमारे विचारों को जन्म देता है। विचारों से वाणी का निर्माण होता है और वाणी से कर्म होते हैं। यदि मन में अच्छे विचार नहीं हैं, तो वाणी और कर्म भी अच्छे नहीं होंगे। यदि मन में बुरे विचार हैं, तो वाणी और कर्म भी बुरे होंगे।
मित्रों उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति के मन में दूसरों के प्रति ईर्ष्या या द्वेष है, तो वह दूसरों के बारे में बुरे विचार करेगा। इन बुरे विचारों से उसकी वाणी में कठोरता और क्रोध आ जाएगा। इस तरह की वाणी दूसरों को भी आहत कर सकती है।
मन, विचार, वाणी एवं कर्म में सामंजस्य स्थापित करने के लिए व्यक्ति को अपने मन को नियंत्रित करना सीखना चाहिए। उसे अपने विचारों को सकारात्मक दिशा में मोड़ना चाहिए। उसे अपनी वाणी को मर्यादित रखना चाहिए। और उसे अपने कर्मों से दूसरों का भला करना चाहिए।
मन, विचार, वाणी एवं कर्म में सामंजस्य स्थापित करने से व्यक्ति का जीवन सुखमय और सफल बनता है। वह दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनता है एवं उसकी यश,कीर्ति , प्रतिष्ठा समाज में प्रतिपादित होती है।
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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