जल के बिना शफर है जैसे
-- डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
जल के बिना शफर है जैसे,
इन्दु बिना अम्बर है जैसे ,
प्राण!तुम्हारे बिना ज़िन्दगी, उसी तरह सूनी-सूनी है।
सुख के जितने भी साधन हैं,
जितने सारे परिकर-जन हैं,
अपने-अपने काम सभी के, किसको मेरे लिए पड़ी है।
माँ, यह कैसी सृष्टि तुम्हारी,
जन्म -मरण है बारी-बारी,
माया के हाथों में क्यों कर, खूनी नियति-कुठारी दी है।
जाल समेटो यह माया का,
रज्जु-सर्प, काया-छाया का ,
जगत् धरहरा निरा धुएँ का, माया छलनामयी परी है ।
ज्ञानी कहते, दृष्टि तुम्हारी,
जिस पर भी पड़ती है न्यारी, वैधी सृष्टि पंगु हो जाती, माया भाग खड़ी होती है ।
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