सामाजिक समस्याओं के निराकरण के लिए बुद्धिजीवी एक मंच पर आएँ:-ज्योति सिंह/तरन्नुम तारा
सरकारी प्रयासों के बावजूद भी सामाजिक समस्याएं दिन प्रतिदिन सुरसा की मुंह की तरह बढ़ती जा रही हैं। वे समस्याएं चाहे हिंसा, आतंक, विभिन्न प्रकार के अपराध-- चोरी, डकैती, बलात्कार, भ्रष्टाचार की हो -- लोग त्रस्त हैं, त्राहिमाम कर रहे हैं। ऐसे में बुद्धिजीवियों का मौन चिंताजनक है। यह कथन है सामाजिक संगठनों से जुड़े मानवाधिकार संरक्षण प्रतिष्ठान एवं कौटिल्य मंच के वरिष्ठ सदस्य ज्योति सिंह एवं तरन्नुम तारा का। उन्होंने सयुंक्त बयान जारी कर कहा कि समाज -संचालन का दायित्व, समाज को सही दिशा में ले जाने की जिम्मेवारी एकमात्र बुद्धिजीवियों की होती है किंतु हमें लगता है कि विभिन्न कारणों से चाहे वह कारण स्वार्थ का हो, प्रलोभन का हो, धर्म जाति- पांति, उच्च -नीच या वर्ग -संप्रदाय का हो। अभी पूरे देश में ज्वलंत मुद्दा छाया हुआ है, वह है आरक्षण एवं उत्तर -दक्षिण विभाजक सोच। देश को उत्तर और दक्षिण में बांटने का मुद्दा बनाकर राजनीतिक दल राजनीति करना चाहते हैं जो किसी भी दृष्टिकोण से देश के लिए उचित नहीं है। दलित पिछड़े वर्गों को आरक्षण देकर उत्थान का दंभ भरने वाले राजनीतिक दलों के तथाकथित नेताओं की व्यक्ति समाज या देश के प्रति संकीर्ण सोच क्यों है ? इस पर रचनात्मक और सकारात्मक चिंतन की आवश्यकता है। अभी तक उन वर्गों को जिनके हित की बातें कर आरक्षण का प्रावधान किया गया था क्या सचमुच उसका लाभ उनको दिला सके हैं ? मेरी समझ में अभी तक तो उसका लाभ क्रिमिलेयर से आगे नहीं बढ़ा है। नतीजा आरक्षण का फायदा केवल क्रीमीलेयर जमात कई पीढियों से उठा रही है। आम जनों की स्थिति तो जस की तस है। अनुसूचित जाति जनजाति को आरक्षण मिलने के बावजूद भी हालत यह है कि इन वर्गों की आर्थिक सामाजिक स्थिति प्रायः वैसी ही है । इस गंभीर विषय पर समाज के, देश के तथाकथित शुभचिंतक नेताओं को गंभीरता पूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। साथ ही समाज में व्याप्त विभिन्न समस्याओं के निराकरण के लिए समाज के जागरूक जनों, बुद्धिजीवियों पर भी विचार करने का दबाव बढ़ा है ।।
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