देखो देखो सर्दी आई

देखो देखो सर्दी आई

देखो देखो सर्दी आई
मुन्नी ओढ़े नरम रजाई
दिसंबर के जाड़ा सताई
किंतु सर्दी करे भलाई ।
खाना खाएं गरम गरम
चाहे खा लें जितना चरम
पेट में सब चल जाता
पेट में होता सब नरम ।
अधिक जब लगे जाड़ा
बाहर धूप शीघ्र पुकारा
उर्जा गर्मी दोनों है देता
सर्दी का धूप बड़ा प्यारा ।
ग्रीष्म ताप से होते वंचित
ग्रीष्म उर्जा करते संचित
शरद में विद्यालय में होते
सुंदर कार्यक्रम हैं मंचित ।


पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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