अस्तित्व की लड़ाई

अस्तित्व की लड़ाई

--: भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
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आज हमारा समाज अपने अस्तित्व की लडाई लड रहा है।ये लडाई अनादि काल से अनवरत जारी है।अस्तित्व की लडाई को सनातन लडाई की संज्ञा दी जा सकती है।जहां तक इस तथ्य को मैं जान और समझ रहा हूं।
इस परिवर्तित संसार में अपने अस्तित्व को बचाए रखना भी बडी चुनौती है।समय के साथ बहुतों का अस्तित्व मिट गया और मिट रहा है।ईतिहास साक्षी है।पहले के जमाने में राजतंत्र था।राजे- रजवाड़े लडते थे।उनके बिजय- पराजय में मेरी आजादी और गुलामी थी और आज भी स्थिति वही है।राजनेताओं के हार- जीत में हम परतंत्र और स्वतंत्र हैं।
हमें तो आश्चर्य होता है कभी-कभी भारतीय ईतिहास को पढते हुए कि कैसे हमारे उपर स्वतंत्रता के नाम पर गणतंत्रता को थोप दिया गया।वादा स्वतंत्राता दिलाने की थी?राजतंत्र मिटाकर गणतंत्र आ गया।आज राजतंत्र का अस्तित्व मिट गया।
पहले लोग गाँव में रहते थे।और आज शहर में।आज गाँव बदहाल है और शहर खुशहाल।शहरी करण के कारण।पहले गाँव के लोग अपनी सहुलियत के लिए सभी साधन उपलब्ध रखते थे।घर,खेत,बाग,बगीचे, तालाब, चारागाह और सैरगाह तक।पर आज उनका ध्यान इन बातों पर नहीं है।आज गावों में इनसबका नितांत अभाव है।पहले छोटे और गरीब लोग के पास अपना दुअरा और दलान होता था।बडे और संपन्न लोगों के पास दलान और छोटे लोगों के पास दुअरा।ये आज कहीं खोजने पर नहीं मिलता है।
कल तक जो कुछ अच्छा था आज वह बीते समय की बात हो गई है।उन्हे पुरातन कह कर नकारा जा रहा है।बेकार और फालतु चीजों से हम आज संपन्न होते जा रहे है और उपयोगी जरूरी चीजों से महरूम।कल का पुज्य आज लात खा रहा है।लतखोर आज सम्मान पा रहा है।
जहां दरवाजे पर गौ बाँधी जाती थी आज कुत्ते बंधे है।आज-कल कुत्ते खानदानी होते है । मानव नहीं।खानदानी मानव आज अपने अस्तित्व के लिए छटपटा रहा है।पर निराकरण कुछ नहीं हैं‌। देखने वाले लोग नाक भौं सिकोड़ रहे हैं।कोई पुछने वाला नहीं।कोई कुछ करने वाला नहीं।जो लोग अपने अस्तित्व की लड़ाई नहीं लंड सके वे धराशाई हो गये।समय ने कम पर ये तथाकथित प्रगतिशील मानसिकता ने ज्यादा बर्बाद किया है मानव अस्तित्व के को।
जो है वही तो अस्तित्व है।अपनी दमदार उपस्थिति को हीं मैं अस्तित्व मानता हूं। जिसके होने का आभास स्वत: सबको हो।अस्मिता के लिए किया गया हरेक कार्य स्तुत्य है। वरेण्य है।आप अपने होने का सबूत दीजिए।सिर्फ होने से कुछ नहीं होता है।अस्तित्व तो खुद में प्रमाण है।आप सिर्फ होने का फर्ज अदा किजिए बाकी सब स्वयं हो जायेगा।
संभव है पढ कर आप हमें अतिसंकिर्ण,दकियानूसी, रूढ़िवादी और न जाने क्या -क्या समझेंगे।पर आप जो कुछ भी समझिएगा वह ठीक नहीं होगा। मैं सिर्फ यही तो कह रहा हूं ...आप अपना अस्तित्व बचा कर रखिए।औरों का अस्तित्व बचाइए।मानव समाज आज अति संक्रमण का शिकार हो रहा है।सभी के अस्तित्व की रक्षा करने के लिए आप है।आप पहले अपना अस्तित्व तो बचाइए।आज चतुर्दिक आपके अस्तित्व पर प्रहार किया जा रहा है।माया का मारीच और कपटी कालनेमी आपके अस्तित्व को निगलने के लिए रूप,रंग और छद्म कोटिश: प्रयास कर रहा हैं।यह समय चुप बैठने का नहीं है।
यह संसार सह अस्तित्व का प्रतिरूप है।इसे हर हाल में अक्षुण्ण रखने का सार्थक प्रयास करें।
----------------------------------------वलिदाद,अरवल (बिहार)८०४४०२.
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