नेक होते कर्म जिसके
नेक होते कर्म जिसके ,जीवन में नहीं वे सारे ।
मिली सफलता सदा उन्हें ,
सदा उनके हैं वारे न्यारे ।।
सफल इंसान न घबड़ाता ,
आजीवन संघर्ष करते हैं ।
जैसा भी विषम समय ,
दुःख से कभी न डरते हैं ।।
हर दुःख को सहन करते ,
हर दुःख से वे लड़ते हैं ।
जब आती सुख की बारी ,
कभी नहीं वे अकड़ते हैं ।।
वही होते कर्मठ जुझारू ,
वही सम्मानित होते हैं ।
सुख पाकर जो बदलते ,
निज सम्मान वे खोते हैं ।।
नेक होते हैं कर्म जिसके ,
कभी नहीं वे तो रोते हैं ।
पढ़े कोकिल की पढ़ाई ,
नेक कर्म में नहीं सोते हैं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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