जब मै लिखने लगता,
उभरती तस्वीर
तस्वीर बनकर उभरती,
हकीकत मेरी संवरती।
उसमें 'कमल' रंग भरता,
मेरे मन की ये कल्पनाएँ,
मेरे ये विचारों की धारा,
सब शब्दों में यूं बँधकर,
मेरी कलम से उभरता।
मेरे ये सपने, मेरे विचार,
मेरी ये भावनाएँ, मेरे दर्द,
मेरी कलम से उभरता,
'कमल 'उसमें रंग भरता।
एक नया संसार बनता,
एक नई दुनिया सजती,
मेरे सपनों का यह घर,
मेरे मन का है आशियाँ।
यह सूरज, चाँद, बादल,
यह पहाड़, नदी, जंगल,
यह फूल, पत्ते, हरियाली,
सब कलम से है उभरता।
' कमल' की कलम से,
मेरी इन कल्पनाओं को,
रूप - आकार है मिलता,
मेरी ये हकीकत संवरती।
स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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