व्यवहार मिलता व्यवहार से

व्यवहार मिलता व्यवहार से

प्यार मिलता है प्यार से ,
जीत मिलता है हार से ।
व्यवहार मिले व्यवहार से ,
सम् सार मिले संसार से ।।
कटुता मिलता है धार से ,
अरिता मिलता है मार से ।
अंत जीवन का होता जब ,
अर्थी कंधे लगते हैं चार से ।।
अभ्यस्त होते जो आलसी ,
जीवन भी लगता भार से ।
कटु वाणी से कटुता मिले ,
उर खिलता मधुर उद्गार से ।।
सफलता हों तभी निश्चित ,
अटल अविचल दृढ़ ठार से ।
संभव होता तभी ये सृष्टि ,
जब संयोग मिले नर नार से ।।
कर्तव्य होता है अहम प्रथम ,
फिर जुड़ते हम अधिकार से ।
चाहे बसें किसी के बगल में ,
चाहे बसें सात समुद्र पार से ।।
यारी तो होती है यह यार से ,
संबंध टूट जाता तकरार से ।
दधि कभी दूध नहीं है बनता ,
जल मीठा न होता है क्षार से ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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