जाते हुए दिसंबर
मौसम सर्द हो गया,दिल भी ठंडा हो गया।
जाते हुए दिसंबर सुन जरा,
उसकी यादों को भी अपने साथ लेते जा।
दिसंबर भी बीत गया,
कोशिश ए एतबार में।
फिर नए साल के शुरुवात होगी,
एक तेरे इंतजार में।
कुछ ख़ुशियाँ और कुछ आँसू,
दे कर वो हमें टाल गया,
'कमल' जीवन का इक और,
हमारा सुनहरा साल गया।
कभी-कभी याद आती है,
वो बातें वो वक्त वो दिन।
काश वो पल फिर से लौट आते,
काश वो वक्त फिर से आ जाता।
पर अब तो वो पल गुज़र गए,
वो दिन बीत गए।
अब तो बस यादों में रह गए,
वो पल वो दिन वो यादें।
दिसंबर जाते जाते,
हमारे दिल में एक ख़्वाब छोड़ गया।
काश वो ख़्वाब पूरा हो जाए,
काश वो ख़्वाब साकार हो जाए।
लेकिन अब तो बस ख़्वाब ही रहेगा,
वो ख़्वाब कभी पूरा नहीं होगा।
हम इस ख़्वाब को दिल में संजो कर,
और हमेशा याद रखेंगे।
स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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