बदलना सृष्टि की प्रक्रिया, सब कुछ बदलता है
बदलना सृष्टि की प्रक्रिया, सब कुछ बदलता है,बचपन जवानी बुढ़ापा, सब यहाँ पर बदलता है।
कभी रूप का सागर, कभी झुर्रियां हों चेहरे पर,
कल ख़ुशियाँ थी आँगन, कभी सन्नाटा बदलता है।
है बदलता सब कुछ यहाँ, प्रकृति का हिस्सा है,
सुबह शाम दोपहर, यह चार पहर का क़िस्सा है।
जो नहीं बदला जगत में, ऐसा कुछ भी होता नही,
सब कुछ बदलता मगर, यादों से कुछ शिक्षा नहीं।
है नहीं मुमकिन यहाँ, बदले न अपने आप को,
उम्र के प्रभाव से कैसे, बदले न अपने आप को।
बचपन की निश्छलता, न जाने कहाँ खो गई,
हो गये समझदार तो क्यों, बदले न अपने आप को?
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन ५३ महालक्ष्मी एनक्लेव
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