इश्क को अपने छुपाता रहा हूँ,

इश्क को अपने छुपाता रहा हूँ,

तेरा नाम लिखकर मिटाता रहा हूँ।
था डर तेरी रूसवाई का मुझको,
अपने अरमानों को बिसराता रहा हूँ।
चाहत थी दिल में चाहतों से ज्यादा,
खामोश लब से पुकारता रहा हूँ।
खो न जाओ जमाने की भीड में,
बन्द पलकों से तुमको निहारता रहा हूँ।
तेरे इन्तजार में खुली आँख मेरी,
मर कर भी तुमको तलाशता रहा हूँ।
हो सके तो मिलना उस लोक मुझको,
इश्क का रास्ता संवारता रहा हूँ।

अ कीर्तिवर्धन
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