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दिल्ली

दिल्ली

दिल्ली कभी नहीं चीखती,
वह
संवेदना शून्य है
वहाँ बस सत्ता है, पैसा है
और तरक्की है।
स्त्री और पुरुष
सब दौड़ रहे हैं
पैसा पाने की अंधी दौड़ में,
कुचलते हुए सभ्यता, संस्कृति
और संस्कारों को।


दिल्ली चाहती है
अनुकरण करना
अमेरिका का
और विकास का मतलब
मानती है
बड़े-बड़े शोपिंग मॉल्स
रात-दिन मॉल व सडकों पर
चहल कदमी,
नग्नता का प्रदर्शन करते
युवा व अधेड़ नवधनादड्य
पच्छिम का अनुकरण
बड़ी आधुनिक गाड़ियां,
क्लब व बार
और
आज़ादी के नाम पर
जिस्मों से खिलवाड़ की संस्कृति,
सिगरेट, शराब, नशे का चलन व
जिन्दा गोस्त की नुमायश।
चमचमाती सड़कें,
चिकनी देह,
सत्ता के गलियारे
बड़ी बुलंद इमारतें
शॉपिंग मॉल्स
बड़ी-बड़ी गाड़ियां
नग्नता
शराब, सिगरेट, मांसाहार
उन्मुक्त जीवन
सडकों व पार्कों में आलिंगन


और
….
.........
…………
वह सब
जिसकी कल्पना
देवताओं को दुर्लभ
मगर
सभ्यता, संस्कृति और नैतिकता
यानि
पिछड़ेपन की निशानी।
बस
यही है
वर्तमान दिल्ली की
संक्षिप्त कहानी।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
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