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उड़ रहीं इंसानियत की धज्जियाँ।


उड़ रहीं इंसानियत की धज्जियाँ।

-- डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
उड़ रहीं इंसानियत की धज्जियाँ।
सूना पड़ा नैतिकता का आशियाँ।
मन्दिरों में राम के हैं बज रहीं ,
कट्टर-कुटिल कर-पल्लवों से घंटियाँ।
राजनीतिक रंग के रामायणी,
धो रहे हैं राम की रानाइयाँ ।
धर्मध्वजियों के सुभग प्रासाद में,
विचरती हैं हस्तिनी रंगीनियाँ ।
राजसत्ता-संग परिणय धर्म का,
भद्र जन हैं बजाते शहनाइयाँ।
सिरफिरापन योगगुरु का, देखिए- सुझाते वाजीकरण की युक्तियाँ।
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