हवा , बादल और आसमान

हवा , बादल और आसमान

आज बीच दुपहर .......
चलने लगी ठंडी हवा मधम सी,
घिर आए बादल काले - नीले,
ये छटा अनोखी आसमान की।

चारों ओर पौधे और प्रकृति में,
उठने लगी आस हरियाली की,
पशु - पक्षी में, उठने लगी उमंग,
कोयल कूक रही, मयूर नृत्य संग।
देखो आज मनुष्य भी खुश हुआ,
कि आज भीगेगा बारिश में अंग,
होंगे तृप्त ये,प्यासे पौधे - प्रकृति,
देखें सब आने वाले सावन का रंग।


लेकिन अचानक .........
हवा का जो आया इक झोंका,
बादलों को पल में उड़ा गया,
चला गया बरसात का मौका।
पशु-पक्षी फिर से निराश हो गए,
प्रकृति फिर से प्यासी ही रह गई,
बिन वृष्टि मनुष्य भी दुखी हो गए,
प्रेयसी सूखा आंगन निहार रही।
मौलिक, स्वरचित एवं अप्रकाशित पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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