अहंकार
जीवन होता बहुमूल्य ,अहंकार मत कर प्यारे ।
जीवन में मिलता हार ,
अहंकार मत कर प्यारे ।।
अहंकार में डूबा बालि ,
निज भावे को रखा था ।
अहंकार भाव कारण ,
प्राणांत मजा भी चखा था।।
अहंकार किए थे जो भी ,
मारे गए थे सब रजवाड़े ।
अहंकार अभिमान बड़ा ,
अहंकार मत कर प्यारे ।।
अहंकार कारण सीता हरण ,
दुष्ट रावण ने किया था ।
संत भ्रात विभीषण निकाल ,
अपयश मोल लिया था ।।
अहंकार कारण वैरी हुए ,
हर अहंकारी सदा हैं हारे ।
अहंकार है जन धन नाश ,
अहंकार मत कर प्यारे ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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