नीचे रक्षक होते हैं पिता ।

नीचे रक्षक होते हैं पिता ।

ऊपर रक्षक ईश्वर हैं होते ,
नीचे रक्षक होते हैं पिता ।
धन्य होत पिता का जीवन ,
पालन में जो जीवन बीता ।।
अंदर होती है मातृ साया ,
बाहर पितृ होता है छाया ।
जरा सी ठेस लग जाए पैर ,
रो पड़े मातपिता की काया ।।
बेटे बिटिया में जीवन बीता ,
बेटे बिटिया प्राण आधार ।
निज तन हर भार उठाकर ,
उनका जीवन करे साकार ।।
हर ऋण से होते वही वंचित ,
जिसने पढ़ा रामायण गीता ।
मातपिता ऋण से वे उबरते ,
जिसने मातपिता को जीता ।।
पिता जिए निज बच्चों हेतु ,
बच्चा वही जो पितु हेतु जिता ।
धन्य बच्चे भी तो होते वही हैं ,
धन्य होते हैं वैसे ही ये पिता ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार ।
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