जब हम रात को गाढ़ी नींद में सो जाते हैं ।
अनेक प्रकार के स्वप्न नींद में आते-जाते हैं ।कभी हमारा सिर धड़ से अलग हो जाता है ।
बिना प्रयास किए फिर आकर जुड़ जाता है ।
स्वप्न में हम रोते हैं और खिलखिला कर हंसते हैं।
अच्छे स्वप्न में हंस कर बुरे में बिलखते हैं ।
कभी रंक से राजा तो कभी राजा से भिखारी ।
नींद खुलने पर हम वहीं हैं जो असलियत है हमारी ।
हमारा सुख दुःख हमारे कर्मों का ही भोग है ।
कोई इसे दे रहा है सोचना सिर्फ मनोरोग है ।
सारा जीवन तो हम छल प्रपंच में लगे हुए हैं ।
क्षणिक भौतिक सुखों में ईश्वर को भूले हुए हैं ।
सत्य समान दूसरा कोई धर्म नहीं जीवन का सार है ।
अच्छा कर्म और ईश्वर की भक्ति ही जीवन संसार है ।
जय प्रकाश कुंअर
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