मातपिता गुरु भगवान

मातपिता गुरु भगवान

प्रथम स्थान तो माता का है ,
जिसने दिया जन्म संस्कार ।
आंचल फैला छाया है दीन्ही ,
औ दिया जीने का आधार ।।
द्वितीय स्थान पिता का होता ,
जो करते हमारा हैं पोषण ।
मानव कुल के गुण बतलाते ,
मन के बतलाते हैं दोषण ।।
तृतीय स्थान शिक्षकवृंद का ,
शिक्षा देते हमें जो भरपूर ।
सभ्यता शिष्टता हैं सीखाते ,
अवगुणों से करते हमें दूर ।।
चतुर्थ स्थान सज्जन वृद्ध हैं ,
हमें सीखाते निष्ठा औ श्रम ।
आदर स्नेह प्यार सीखाते ,
और बताते करना सत्कर्म ।।
पंचम स्थान गुरु जी आते ,
जीवन का गूढ़ देते हैं दीक्षा ।
गुरु ज्ञान से वहम है मिटता ,
जीवन में जिनकी प्रतीक्षा ।।
क्रमवार महत्व अब आता ,
प्रथम स्थान मात औ तात ।
द्वितीय शिक्षक गुरुजी का ,
तृतीय ईश जपते जो प्रात ।।
चतुर्थ स्थान सज्जनवृंद का ,
सारे बुजुर्ग और मीत भ्रात ।
जिन कृपा से जीवन निखरे ,
जिनसे कटते दिवा व रात ।।
सबको सहृदय मेरा नमन है ,
सबका करूॅं मैं सादर वंदन ।
हे जीवन को निखारनेवाले ,
तेरा सदा ही रहे अभिनंदन ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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