प्रकृति का शृंगार

प्रकृति का शृंगार

ये धरा के सुंदर बाग बगीचे ,
पुष्पों से सुसज्जित उद्यान ।
सुंदर पंखों वाली पक्षी गण ,
कैसा सृजन तेरा भगवान ।।
ये तालाब पोखरे और कुएं ,
कितने सुंदर खेत खलिहान ।
सृजन करते ईश हैं लेकिन ,
सींचन करते कृषक महान ।।
हर सृजन होता मानव हेतु ,
रक्षा कर्म हमारा यह प्रधान ।
मानव हेतु विश्व में हर कुछ ,
मानवीय सुरक्षा ईश अरमान ।।
धरा बनी यह स्वर्ग से सुंदर ,
धरा से प्रकृति का यह प्यार ।
पशु पक्षी मानव पेड़ व पौधे ,
सारे हैं धरा के प्रकृति शृंगार ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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