रे प्रवासी जाग, राष्ट्र का संवाद आया

रे प्रवासी जाग, राष्ट्र का संवाद आया

रे प्रवासी, जाग, तेरे देश का संवाद आया,
स्वदेश की पुकार है, सुनो भटके हुए मन!


सागर - पार से आ रही है एक सुगंध,
जैसे कि माँ की गोद की है यह सुवास।


मानों हवा में बह रही है, एक मधुर ध्वनि,
जैसे कि पिता का है यह स्नेह-आशीर्वाद।


उठो रे,भारत के सपूत, देश की धरती को,
अपने दिल से और प्रवासी सांस में बसा ले।


धरती मुस्कुरा रही है, आकाश झूम रहा है,
जैसे कि देश की जय-जयकार हो रही है।


रे प्रवासी, जाग, तेरे देश का संवाद है आया,
सुन तू मधुर स्वर, तेरे देश का संवाद आया।


तेरे देश ने बदलाव की राह पकड़ ली है,
अब तेरे इस देश का भविष्य उज्ज्वल है।


संघर्ष गरीबी-अशिक्षा-बेरोजगारी से किया,
तेरे देश में विकास का नवीन युग है आया।


रे प्रवासी, जाग, तेरे देश का संवाद है आया,
उठ, उठ कर के देख, तेरे घर की द्वार आया।


तेरे देश ने तुझे खुले हाथों से है बुलाया,
तेरे देश में तेरे लिए यह अवसर है आया।


देश में तेरे लिए काम है, तेरे लिए सम्मान है,
ये देश तेरे लिए एक सुखी जीवन है लाया।


आओ, मिलकर हम अपने राष्ट्र को बनायें,
विकसित - समृद्ध, बदल डालें इसकी काया।


आओ, मिलकर देश के सपने साकार करें,
जहाँ हर ओर हो सुख और शान्ति की छाया।


रे प्रवासी, जाग, तेरे देश का संवाद आया,
उठ, उठ कर देख, तेरे घर की द्वार आया।


स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित "पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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