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दिल चाहता है

दिल चाहता है

तेरे पास आने को दिल चाहता है
फिर से मुस्कराने को दिल चाहता है


बहुत दिन रहे दूर हैं जान से, अब
गले से लगाने को दिल चाहता है


बहुत थक गईं मैरी तन्हाईयां हैं
तेरा साथ पाने को दिल चाहता है


चलो साथ मिलके चले हम कहीं भी
बहुत दूर जाने को दिल चाहता है


जहां तुमने अक्सर गिराई है बिजली
वही घर बनाने को दिल चाहता है


बड़ी खूबसूरत हैं आंखें तुम्हारी
वहीं डूब जाने को दिल चाहता है


अजंता की मूरत सी सूरत के आगे
'जय' सर झुकाने को दिल चाहता है
*
~जयराम जय 'पर्णिका' बी-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास,कल्याणपुर,कानपुर-208017(उ. प्र.)
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