बोली' को 'भाषा' में बदलने वाले 'अंगिका के दधीचि' थे परमानंद पाण्डेय:-डा अनिल सुलभ

बोली' को 'भाषा' में बदलने वाले 'अंगिका के दधीचि' थे परमानंद पाण्डेय:-डा अनिल सुलभ

  • महाकवि रामचंद्र जायसवाल ने हिन्दी-काव्य को नूतन ऊर्जा दी, जयंती पर दोनों मनीषियों को दी गयी काव्यांजलि, डा राजवर्द्धन आज़ाद का हुआ अभिनन्दन, कवि अर्जुन प्रसाद सिंह को मिला स्मृति-सम्मान !
पटना, १९ दिसम्बर। अंग प्रदेश में बोली जाने वाली एक 'बोली' को, 'भाषा' के रूप में प्रतिष्ठित करने वाले महाकवि डा परमानन्द पाण्डेय को 'अंगिका' में वही स्थान प्राप्त है, जो खड़ीबोली में भारतेन्दु का है। इन्हें अंगिका का 'पाणिनि' कहना भी अतिशयोक्ति नहीं है। पाण्डेय जी ने इसे संजीवनी दी और उत्कर्ष तक पहुँचाया। सच्चे अर्थों में वे अंगिका के 'दधीचि' थे । उनका संपूर्ण जीवन एक संत-ऋषि की भाँति साहित्य और समाज की सेवा में व्यतीत हुआ।
यह बातें मंगलवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में अंग-कोकिल परमानन्द पाण्डेय और महाकवि रामचंद्र जायसवाल की जयंती पर आयोजित समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि पाण्डेय जी ने अंगिका का व्याकरण लिखा। 'अंगिका का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन', सात सौ पृष्ठों में लिखा गया उनका महान ग्रंथ है। वे संस्कृत और हिन्दी के भी मनीषी विद्वान थे।
महाकवि जायसवाल को स्मरण करते हुए डा सुलभ ने कहा कि रामायण और गीता को खड़ी बोली में उतारने का एक बड़ा श्रेय महाकवि को जाता है। प्रबंध-काव्य को उनसे बड़ा बल प्राप्त हुआ।
इस वर्ष का 'महाकवि रामचंद्र जायसवाल स्मृति-सम्मान' कवि अर्जुन प्रसाद सिंह को प्रदान किया गया। विश्वविद्यालय सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष तथा बिहार विधान परिषद में सद्यः मनोनीत सदस्य डा राजवर्द्धन आज़ाद ने उन्हें अंग-वस्त्रम, प्रशस्ति-पत्र, स्मृति-चिन्ह और दो हज़ार एक सौ रूपए की सम्मान राशि देकर सम्मानित किया।
इसके पूर्व सम्मेलन की ओर से, डा आज़ाद का, विधान परिषद में मनोनीत किए जाने पर अभिनन्दन किया गया। उन्हें सम्मानित करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष ने कहा कि साहित्य, चिकित्सा और शिक्षा में अत्यंत मूल्यवान योगदान देने वाले डा आज़ाद का परिषद में मनोनयन, संपूर्ण प्रबुद्ध-समाज का सम्मान है।
अपने उद्गार में डा आज़ाद ने कहा कि महकवि परमानन्द पाण्डेय और रामचन्द्र जायसवाल जैसे कवियों ने देश और साहित्य के लिए अपना सारा जीवन अर्पित किया। साहित्य, जिसका अर्थ ही सबका हित करना है, समाज में प्राण और ऊर्जा भरता है।
सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, सुप्रसिद्ध संस्कृति-कर्मी पारिजात सौरभ, डा परमानंद पाण्डेय के सुपुत्र और कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय'प्रकाश', प्रो आनन्द मूर्ति, डा अंजनी राज, उदय कुमार मन्ना, अवध बिहारी सिंह, प्रो सुशील कुमार झा तथा बाँके बिहारी साव ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। मुख्य अतिथि डा राज वर्द्धन आज़ाद, आज के सम्मानित कवि अर्जुन प्रसाद सिंह, कुमार अनुपम, जय प्रकाश पुजारी, यगेश कुशवाहा, ई अशोक कुमार, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा पंकज कुमार सिंह, डा पल्लवी विश्वास आदि कवियों और कवयित्रियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। वैशाली ज़िला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष शशि भूषण कुमार, कामिनी कुमारी,अमन वर्मा, अल्पना कुमारी, डा चंद्रशेखर आज़ाद, देव प्रकाश, ललन प्रसाद, मनोज कुमार भगत, नन्दन कुमार मीत आदि प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।`
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