शबरी के राम
जीवन काल जो भक्ति बनाई ,राम प्रतीक्षा में जीवन गॅंवाई ,
भक्ति भी कहलाई निष्काम ,
इक दिन आएंगे शबरी के राम ।
घर से मार्ग नित्य झाड़ू लगाना ,
नहा धोकर नित्य ध्यान लगाना ,
प्रतीक्षा में बीतते सुबह से शाम ,
इक दिन आएंगे शबरी के राम ।
स्वागत हेतु नित्य पुष्प सजाती ,
राम के नाम नित्य रंगोली बनाती ,
अथक निरंतर प्रतीक्षा अविराम ,
इक दिन आएंगे शबरी के राम ।
राम आएंगे नित्य आस लगाना ,
भूखे प्यासे दिन यूॅं ही बीताना ,
नित्य दिन छपती राम का नाम ,
इक दिन आएंगे शबरी के राम ।
बहुप्रतीक्षित इक दिन राम आए ,
राम लखन दोउ भ्रात दिखलाए ,
आते शबरी मन कीन्हीं प्रणाम ,
आज अब आए शबरी के राम ।
राम को सच्ची भक्ति दिखलाई ,
भक्ति में शबरी झूठी बेर खिलाई ,
भक्ति कर शबरी प्राप्त हुई धाम ,
मनोरथ सिद्ध किए शबरी के राम।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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