कहां से कहां आ गये

कहां से कहां आ गये

हां। एक समय था जब घर की महिला ओर बेटी स्कूल, कालेज दफ्तर भी जाती साथ ही अपने आपको एक निश्चित दायरे में रखती। जिसे संस्कार नाम दिया जाता है।और वो अपनी अपनी संस्कृति की भी रक्षा करतीं।
समय बदला, विचार बदले, संस्कार और संस्कृति की पैरों में बेड़ी और हाथ में ताला मानते हुए एक नारा दिया।"हमें आजादी चाहिए, मेरा अधिकार वापस करो, नारी शोषण बंद करो।"
मैं मानता हूं और सही बात है कि संकीर्ण मानसिकता के लोगों ने महिलाओं का शोषण किया। हमारी सरकार ने भी माना कि संकीर्ण विचारधारा के पोषक नारी शोषण करते हैं। अतः उनके लिए संविधान संशोधन करते हुए बहुत से ऐसे कानून बनाया जो उनके हितों की रक्षा कर सके।
पाश्चात्य संस्कृति, बालीवुड की फिल्मों का जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। और उसी कानून को ढाल बनाकर संस्कार और संस्कृति का विरोध आरंभ हो गया।
सिगरेट,शराब का सेवन, हुक्का पार्टी में जाना देर रात तक नाइट क्लब में रहना, देर रात तक फालतू में घर से बाहर रहना जैसी गंदी आदतों का विरोध यदि माता-पिता, भाई,पति या उसके ससुराल वाले द्वारा किया जाता है तो उन्हीं कानूनों का दुरुपयोग करते हुए इन लोगों को कटघरे तक पहूंचाने की धमकी दी जाती है।
आज सबसे अधिक प्रताड़ित उस लड़की का पति और उसके ससुराल वाले हो रहे हैं। इस आधुनिकता और पश्चिमी सभ्यता के पोषित लड़कियों को रोकने का प्रयत्न किया जाता है तो दहेज , अनैतिक आचरण , शारीरिक और मानसिक शोषण का आरोप लगा उन्हें जेल की चहारदीवारी के अंदर पहूंचाने का प्रयास करती हैं।
ऐसी लड़कियां ऐसे गंदे आरोप लगा ससुराल के घर में ही रहकर ससुराल
पक्ष के सारे लोगों को न्यायालय का चक्कर लगाने के लिए वाध्य कर रही हैं। इतना ही नहीं ससुराल में ही रहना, और ससुराल के पक्ष वालों से गुजारा भत्ता का भी दावा न्यायालय में करती हैं
आज सबसे अधिक प्रताड़ित पुरुष वर्ग इन आधुनिकता और पश्चिमी सभ्यता के पोषक लड़कियों से हैं। ये नहीं कि केवल सामान्य वर्ग ही प्रताड़ित है। अपने आपको विशिष्ट वर्ग के कहने वाले चिकित्सक, अभियंता, न्यायाधीश , अधिवक्ता, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी, सिनेमा जगत के वे सितारे जिनकी ओर ऊंगली उठाने की हिमाकत करना आसान नहीं, बड़े बड़े उद्योगपति भी अछूते नहीं हैं।
सामान्य वर्ग की अपेक्षा इनका प्रतिशत अधिक होने की संभावना है।
आज आवश्यकता है कानून में आवश्यक संशोधन की। साथ ही पुरुषों के हितों की रक्षा के लिए भी कानून बनाने की।आज आवश्यकता है न्यायालय द्वारा एक गुप्त संगठन बनाने की जो ईमानदारी से जांच कर न्यायाधीश को अपना गुप्त प्रतिवेदन समर्पित करें जिससे न्यायाधीश को किसी भी ऐसे मुकदमेंमैं तथ्यपूर्ण और निष्पक्ष न्याय देने में सहूलियत हो सके।

जितेन्द्र नाथ मिश्र

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