कौमुदी-महोत्सव' और 'महामूर्ख सम्मेलन'के महान सूत्रधार थे विश्वनाथ शुक्ल 'चंचल':-डा अनिल सुलभ

कौमुदी-महोत्सव' और 'महामूर्ख सम्मेलन'के महान सूत्रधार थे विश्वनाथ शुक्ल 'चंचल':-डा अनिल सुलभ

  • प्रथम स्मृति-पर्व पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुआ समारोह, दी गयी काव्यांजलि ।
पटना, ११ दिसम्बर। पटना में सांस्कृतिक-उत्सवों के लिए सदैव चर्चा में रहे स्मृतिशेष संस्कृति-कर्मी, पत्रकार, कवि और रंगकर्मी पं विश्वनाथ शुक्ल 'चंचल' एक महान आयोजक और 'संस्कृति-पुरुष' के रूप में स्मरण किए जाते रहेंगे। नगर के दो बड़े उत्सवों 'कौमुदी-महोत्सव' और 'महामूर्ख-सम्मेलन' के वे सूत्रधार थे। शरद-पूर्णिमा के दिन हुए 'महारास' की स्मृति में प्रतिवर्ष आहूत होने वाले 'कौमुदी महोत्सव' और होली के अवसर पर आयोजित होनेवाले 'महामूर्ख सम्मेलन' की चर्चा संपूर्ण भारतवर्ष में हुआ करती थी, जिनका आयोजन और संचालन उन्होंने ६६ वर्षों से अधिक समय तक किया। अपने जीवन के अंतिम-काल तक वे इन उत्सवों के प्राण बने रहे।
यह बातें, सोमवार को, नवगठित संस्था 'पं विश्वनाथ शुक्ल चंचल स्मृति-संस्थान' के तत्वावधान में, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित 'प्रथम-स्मृति-पर्व' की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि मुर्दा हो रहे आज के समाज में, चंचल जी एक ज़िंदा और संजीदा व्यक्ति थे। उनके मुख पर सदा खेलती मुस्कान, दुखियों को हँसाती और जीवन का संदेश देती रहती थी। वे मरघट-मरघट में प्राण लिए गुजरने वाले मुस्कान के पर्याय थे।
समारोह का उद्घाटन करते हुए, पूर्व केंद्रीय मंत्री डा सी पी ठाकुर ने कहा कि चंचल जी पटनासिटी के सांस्कृतिक-धड़कन थे। उनकी तरह के लोग अब बहुत कम होते हैं। वे हमारी स्मृतियों में सदैव जीवित रहेंगे।
वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानवर्द्धन मिश्र ने कहा कि चंचल जी एक ऐसे सारस्वत व्यक्तित्व थे, जिन्होंने जीवन भर सब को हँसाया और अंत में रुलाकर चले गए। वे एक बड़े पत्रकार और रंगमंच के मज़े हुए कलाकार भी थे।
चंचल जी के ज्येष्ठ पुत्र और पत्रकार रजनीकांत शुक्ल ने कहा कि सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की प्रेरणा से स्मृति-संस्थान की स्थापना की गयी है। यह संस्था पिताश्री की स्मृति को जीवित बनाए रखने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहेगी।
स्वर्गीय चंचल के दूसरे पत्रकार पुत्र और संस्था के सचिव रविकान्त शुक्ल ने कहा कि पिताजी ने जिन सांस्कृतिक-मूल्यों के लिए अपना जीवन अर्पित किया था, उन मूल्यों की रक्षा करने में हम कभी पीछे नहीं हटेंगे। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, वरिष्ठ पत्रकार डा लक्ष्मीकांत सजल, डा राजीव गंगौल, प्रो सुशील कुमार झा, अबध विहारी सिंह, विजय कुमार सिंह आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। कवि , कुमार अनुपम, शायरा तलत परवीन, जय प्रकाश पुजारी, राज प्रिया रानी, अरविन्द अकेला, अर्जुन प्रसाद सिंह, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, विजय कुमार सिंह आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी सुमधुर काव्य-रचनाओं से अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय 'प्रकाश', विनोद किसलय, अल्पना कुमारी, जीतन शर्मा, विजय कुमार दिवाकर, संजय राय 'चित्रकार' , पंकज शुक्ला, डा आशुतोष कुमार, राज कुमार चौबे आदि प्रबुद्धजन समारोह में उपस्थिति थे।
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