वाजपेयी जी कहते थे राजनीति और साहित्य दोनों ही जीवन के अंग हैं
दिव्य रश्मि संवाददाता जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से |
भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर में, ग्वालियर रियासत के प्रसिद्ध कवि पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी के घर हुआ था। उनके दादा पंडित श्यामलाल वाजपेयी थे। वाजपेयी जी प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नेता, प्रखर राजनीतिज्ञ, नि:स्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता, सशक्त वक्ता, कवि, साहित्यकार, पत्रकार और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे।
वाजपेयी जी आजीवन अविवाहित रहे। उन्हें 25 जनवरी, 1992 को भारत के प्रति निस्वार्थ समर्पण और समाज की सेवा के लिए भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने 28 सितंबर 1992 को उन्हें हिंदी गौरव' , 20 अप्रैल 1993 को कानपुर विश्वविद्यालय उन्हें डी लिट की उपाधि, 01ली अगस्त 1994 को लोकमान्य तिलक पुरस्कार, 17 अगस्त 1994 को श्रेष्ठ सांसद के पुरस्कार तथा पंडित गोविंद बल्लभ पंत पुरस्कार, वर्ष 1971 में पाकिस्तान से स्वतंत्रता प्राप्त करने में बांग्लादेश की मदद करने के लिए वर्ष 2015 में उन्हें बांग्लादेश सरकार ने फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वार अवॉर्ड, 27 मार्च, 2015 को सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया था।
वाजपेयी जी जनता की बातों को ध्यान पूर्वक सुनते थे और उनको आकांक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करते थे। उनके कार्य राष्ट्र के प्रति समर्पण को दिखाते हैं। वे एक साथ छंदकार, गीतकार, चंदमुक्त रचनाकार तथा व्यंग्यकार थे। जबकि उनकी कविता राष्ट्रप्रेम के साथ साथ सामाजिक तथा वैचारिक विषयों पर भी रहता था।
वाजपेयी जी का कहना था कि साहित्य के प्रति रुचि उन्हें उत्तराधिकार के रूप में मिली है। परिवार का वातावरण साहित्यिक था। उनके बाबा पंडित श्यामलाल वाजपेयी को संस्कृत और हिन्दी की कविताओं में बहुत रुचि थी। लेकिन वे कवि नहीं थे, परंतु काव्य प्रेमी थे। उन्हें दोनों ही भाषाओं की बहुत सी कविताएं कंठस्थ थीं। ये अकसर बोलचाल में छंदों को उदधृत करते थे। जबकि वाजपेयी जी के पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी प्रसिद्ध कवि थे। वे ब्रज और खड़ी बोली में काव्य लेखन करते थे।
वाजपेयी जी ने कई पुस्तकें लिखी हैं। इसके अलावा उनके लेख, उनकी कविताएं विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई, जिनमें राष्ट्रधर्म, पांचजन्य, धर्मयुग, नई कमल ज्योति, साप्ताहिक हिंदुस्तान, कादिम्बनी और नवनीत आदि शामिल हैं।
वाजपेयी जी जब पांचवीं कक्षा में थे तो उन्होंने प्रथम बार भाषण दिया था, जिससे लोग काफी प्रभावित हुए थे। उच्च शिक्षा के लिए जब वे विक्टोरिया कॉलेजियट स्कूल में थे तो उन्होंने वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में प्रथम पुरस्कार जीता था। वे राजनीति में रहते हुए साहित्य से जुड़े रहे या साहित्य की साधना करते हुए राजनीति के रंग में रंगे रहे, यह निर्णय करना थोड़ा कठिन है। वैसे वाजपेयी जी कहा करते थे कि राजनीति और साहित्य दोनों ही जीवन के अंग हैं।
वाजपेयी जी ने पोखरण में अनु परीक्षण करके संसार को भारत की शक्ति का एहसास कराया था। कारगिल युद्ध में पाकिस्तान के छक्के छुड़ाने का श्रेय भी इन्ही को मिला था। उन्होंने कहा था कि मैं अपनी सीमाओं से परिचित हूं। मुझे अपनी कमियों का अहसास है। निर्णायकों ने अवश्य ही मेरी न्यूनताओं को नजरअंदाज करके मेरा चयन किया है। सद्भाव में अभाव दिखाई नहीं देता है। यह देश बड़ा है अद्भुत है, बड़ा अनूठा है। किसी भी पत्थर को सिंदूर लगाकर अभिवादन किया जा सकता है। वाजपेयी जी 'रामचरितमानस' को अपने लिए प्रेरणा का स्रोत मानते थे। वाजपेयी जी अपने छात्र जीवन के दौरान पहली बार राजनीति में तब आए जब उन्होंने वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था। वह राजनीति विज्ञान और विधि के छात्र थे और कॉलेज के दिनों में ही उनकी रुचि विदेशी मामलों के प्रति बढ़ी थी।
वाजपेयी जी बचपन से ही प्रखर राष्ट्र भक्त थे। अध्ययन के प्रति रुझान उनमें बचपन से ही प्रगाढ़ थी। वे वाद विवाद प्रतियोगिता में सदैव भाग लेते थे। निजी जीवन में सफलता, उनके राजनीतिक कौशल और भारतीय लोकतंत्र की देन रही है। महिलाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक समानता के पुरजोर समर्थक थे। उनका सपना था कि भारत सभी देशों के बीच एक दूरदर्शी, विकसित, मजबूत और समृद्ध राष्ट्र के रूप में आगे बढ़े।
उनका मानना था कि मरेंगे तो देश के लिए, इस पावन धरती का कंकर-कंकर शंकर है, बूंद बूंद गंगाजल है। वे कहते थे कि भारत के लिए हंसते-हंसते प्राण न्योछावर करने में गौरव और गर्व का अनुभव करूंगा। वे अपनी वाणी, विवेक और संयम का ध्यान रखते थे।
वाजपेयी जी 1951 में भारतीय जनसंघ पार्टी में शामिल हुए थे। भारतीय जनसंघ पार्टी वर्तमान समय में भारतीय जनता पार्टी के नाम से जाना जाता है। वाजपेयी जी राजनीति क्षेत्र में चार दशक तक सक्रिय रहे थे। वे लोकसभा में नौ बार और राज्यसभा में दो बार चुने गए, जो अपने आप में एक कीर्तिमान है। वाजपेयी जी 1980 में गठित भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष भी रहे थे। वाजपेयी जी राजनीतिक प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे। वे 1996 में पहली बार बहुत कम समय के लिए प्रधानमंत्री बने थे। 13 अक्टूबर 1999 को उन्होंने लगातार दूसरी बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नई गठबंधन सरकार के प्रमुख के रूप में भारत के प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया था। इसके अतिरिक्त विदेश मंत्री, संसद की विभिन्न महत्वपूर्ण स्थायी समितियों के अध्यक्ष और विपक्ष के नेता के रूप में भी। रहे थे। उन्होंने आजादी के बाद भारत की घरेलू और विदेश नीति को आकार देने में एक सक्रिय भूमिका निभाई थी।
वाजपेयी जी पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद, सबसे लंबे समय तक गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में रहे थे। वाजपेयी जी ही पहले विदेशमंत्री थे, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में, हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था। वाजपेयी जी परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों से बिना डरे वर्ष 1998 में राजस्थान के पोखरण में द्वितीय परमाणु परीक्षण किया था, भारत की इस परीक्षण का अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए को भनक तक नहीं लग पाई थी।
अटल बिहारी वाजपेयी का नाम लेने से विराट व्यक्ति का बोध होता है, जिसके व्यक्तित्व की व्यापकता असीमित था। एक राजनेता के रूप में तो उन्हें हर कोई जानता और मानता है। लेकिन, एक संवेदनशील साहित्यकार के रूप में भी वे व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के कण-कण में समाहित थे।
वाजपेयी जी की कविता है :-
जाने कितनी बार जिया है,
जाने कितनी बार मरा हूँ।
जन्म-मरण के फेरे से मैं,
इतना पहले नहीं डरा हूँ।
अन्तहीन अंधियार ज्योति की,
कब तक और तलाश करूंगा।
मैंने जन्म नहीं माँगा था,
किन्तु मरण की मांग करूंगा।
बचपन, यौवन और बुढ़ापा,
कुछ दशकों में खत्म कहानी।
फिर-फिर जीना, फिर-फिर मरना,
यह मजबूरी या मनमानी ?
वाजपेयी जी अपनी पार्टी या विरोधी पार्टी का नेता हो, सबको साथ लेकर चलने की खूबी उन्हें दूसरे नेताओं से अलग करती थी। वे कहते थे : -
बाधाएं आती हैं आएं,
घिरे प्रलय की घोर घटाएं,
पांवों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा।'
अटल बिहारी वाजपेयी जी का किडनी में संक्रमण और कुछ अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के चलते अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में 16 अगस्त 2018 को उनका निधन हो गया। उनकी लिखी यह पंक्तियां आज भी प्रासंगिक है :-
हम जिएंगे तो देश के लिए
काल के कपाल पर लिखता
गीत नया गाता हूँ
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता
हूँ गीत नया नाता हूँ
जूझने का मेरा इरादा न था
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा
हर चुनौती से दो हाथ मैंने कियाआंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
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