जो दुख नहीं होता

जो दुख नहीं होता ,

हम काम नहीं करते ।
बाप की कमाई का ,
रहते सदा दम भरते ।
हम बैठे थे निठल्ले ,
रहती थी बल्ले बल्ले ।
रोज दोस्त घर पे आते ,
खुब जश्न थे मनाते ।
न आज की थी चिंता ,
न भविष्य का ही गम था ।
गाढ़ी बाप की कमाई ,
मेरे लिए न कम था ।
जब खत्म हुआ पैसा ,
एक दिन आया ऐसा ।
जो दोस्त थे सब प्यारे ,
रास्ता अपना सिधारे ।
घर में न दाल था न आटा ,
अब होने लगा फांका ।
जब भुख ने सताया ,
तब जाके होश आया ।
खुब भाग दौड़ करता ,
जो काम मिलता करता ।
मिहनत ने रंग लाया ,
खुब पैसा तब कमाया ।
यह मिहनत की कमाई है ,
जो रंग नया लाई है ।
ऐ दुख तुझे बधाई ,
तेरी शिक्षा काम आई ।
सुख हमें अय्याशी सिखाती है ,
दुख हमें सही रास्ता दिखाती है ।
जय प्रकाश कुंअर

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