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जिसकी फ़ितरत रोना होती, वह रोता ही जायेगा

जिसकी फ़ितरत रोना होती, वह रोता ही जायेगा,

अपनी थाली घी न देखा, दूजे की ललचायेगा।
भगवान को भोग लगाया, हमारी अपनी श्रद्धा है,
साँप लौटता कुछ के सीने, देख कर ही जल जायेगा।

माना कुछ भूखे सोते हों, जाकर कुछ उपकार करो,
अपने घर में जगह दो कुछ को, थोड़ा तो उपकार करो।
रोज़ भन्डारे चलते मन्दिर, किसी दाता का नाम नही,
जलन मिटा दूजे की समृद्धि से, आओ कुछ उपकार करो।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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