मगही -धारा
जल में रहके मगर से बैरना हो दादा ना हे खैर,
एतना रुपया बाप रे बाप
दलदल में अब धंसल हे पैर।
कहिया मिटत भ्रष्टाचार
छाप रहल दैनिक अखबार,
देश द्रोह कहियो ना भागत
केतनों पीटब अपन कपार।
करे सपोला छिप के वार
चर्चा में जनता दरबार,
आजादी तो मिलल देश के
भाईचारा पड़़ल बीमार।
सोना आलू के भरमार
देख देख के चढ़़ल बोखार,
बोल रहल बुधना के छौंड़ा
राम राम छोटका सरकार।
रजनीकांत
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