आओ देखो नाच रहा बंदर
दिखा रही खेल है मदारिन ।आजीविका का यही साधन ,
जैसे चलती फिरती बंजारिन ।।
देखो एक हथेली पर ही कैसे ,
बंदर जाकर देखो कैसे बैठा ।
एक पैर खुजला रहा है देखो ,
एक पैर पर ही बैठे है ऐंठा ।।
चला रहा यह बंदर मोबाइल ,
खेल रहा है मोबाइल से गेम ।
मोबाइल देख खेल दिखाता ,
मोबाइल में होता वैसे ये सेम ।।
गले में बॅंधा घुंघरू की पट्टी ,
घुंघरू पे नाच ये दिखाता है ।
दर्शक हॅंस हॅंस लोटपोट होते ,
दर्शक को बंदर नाच भाता है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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