जीसस के विषय में:- प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज

जीसस के विषय में:- प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज

अपने आप को सचमुच भावना के स्तर पर हिन्दुत्वनिष्ठ अनुभव करने वाले और सोशल मीडिया में उत्साह से सक्रिय हिन्दुओं की विशाल संख्या की मुख्य समस्या अज्ञान और बौद्धिक मंदता है। वे सामान्य ज्ञान भी विश्व के विषय में नहीं रखते। यह तो समझ में आता है कि इसके लिये दोषी भारत के शासन पर 77 वर्षों से बैठने वाले शासक और प्रशासक लोग हैं। जिन्हें अपने समाज से कोई प्रेम नहीं है और वे उसे केवल ठगना चाहते हैं तथा प्रेम का दिखावा भी वोट की ठगी के लिये करते हैं और अपनी पार्टी के सामान्य लोगों को भी साथ-साथ ठगते हैं। परंतु फिर यदि आपको उत्साह है विश्व और राष्ट्र के विषय में, तो लोकतंत्र में बौद्धिक परिश्रम पर तो रोक नहीं है। यदि आप आलसी और प्रमादी हैं तो उन विषयों में चुप रहिये और अपनी परंपरागत अच्छी-अच्छी बातें करिये।
अभी ‘क्रिसमस’ आने वाला है। सारे ही ऐसे प्रमादी हिन्दुत्वनिष्ठ शुरू हो जायेंगे जीसस से कृष्ण भगवान और शंकर भगवान की तुलना कर उन्हें बड़ा बताने को। यह वैसी ही हास्यास्पद बात है, जैसी गांधीजी को केवल हवा में राष्ट्रपिता शब्द उछाल देने से लाखों हिन्दुत्वनिष्ठ, जिनमें साकेतधाम पधारे श्री कल्याणसिंह जैसे दिग्गज राजपुरूष भी शामिल थे, उस पर लगे बहस करने। सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम लट्ठ। कांग्रेसियों ने केवल इस शब्द को हवा में उछाल दिया, संविधान में कोई स्थान नहीं दिया जबकि सारे संसार में हर नेशन स्टेट अपने फादर ऑफ नेशन को संविधान में स्थान देता है। कांग्रेसियों की शरारत भाजपाई वगैरह कभी समझ नहीं पाये। भला हो राहुल गांधी का कि वे संसद में ही आँख दबाकर यह दिखाने लगे कि शीर्ष कांग्रेसी नेता कितने शरारती हैं।
यही बात जीसस के विषय में है। सम्पूर्ण प्रबुद्ध यूरोप अब यह घोषित कर चुका है कि जीसस नाम का कोई व्यक्ति कभी भी पैदा नहीं हुआ। मृत सागर में जो ‘डेड सी स्क्रोल’ मिले उनसे सिद्ध हो गया कि ऐसी कहानी ईसा के कई शताब्दियों पूर्व भारत के प्रभाव से उस पूरे क्षेत्र में भी फैली थी, जिसे 20वीं शताब्दी ईस्वी में पहली बार अचानक यूरोप कहा जाने लगा। यद्यपि वह जम्बूद्वीप का सामान्य हिस्सा है और 150 वर्ष पूर्व तक उसे कभी भी यूरोप नहीं कहा गया था।
आज सभी प्रबुद्ध यूरोपीय जानते हैं और यह उनके द्वारा लिखा जा चुका है तथा इस पर प्रबुद्ध यूरोपीयों की सर्वानुमति है कि जीसस नाम का कोई व्यक्ति कभी पैदा नहीं हुआ। वह पाल नामक एक मनोरोगी परंतु मेधावी व्यक्ति की स्थानीय किंवदंतियों को लेकर संकलित की गई और नये रूप में रची गई परिकल्पना मात्र है। यह सर्वानुमति इतनी प्रधान है कि अब तो यूरोप के बड़े-बड़े पादरी लिखित रूप में यह लिख चुके हैं और कह चुके हैं कि हाँ, जीसस नामक कोई ऐतिहासिक व्यक्ति कभी नहीं पैदा हुआ, वह एक आध्यात्मिक अनुभूति मात्र है। फिर भी भारत के आलसी और प्रमादी हिन्दू जीसस को वास्तविक सत्ता माने चले जा रहे हैं।
25 दिसंबर रोम का मकर संक्रांति जैसा उत्सव था। इसलिये अगर आपको उसकी बधाई अपने किसी क्रिश्चियन मित्र को देनी ही है तो उसे ‘बड़े दिन की बधाई’ दीजिये। क्योंकि वह जीसस की कथा (सुसमाचार) रचे जाने के पहले से रोम में मनाया जा रहा था। परंतु उसे जीसस का जन्मदिन मानना तो मनोरंजक है। - प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज
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