चलो ठंढ में चाय पिलाते हैं

चलो ठंढ में चाय पिलाते हैं

बहुत पड़ रही है अब सर्दी ,
चलो गर्म पकौड़े खिलाते हैं ।
सर्दी से थर थर काॅंप रहे हो ,
चलो ठंड में चाय पिलाते हैं ।।
सर्दी से तुम्हें राहत मिलेगी ,
फिर फुर्ती मिले तुम्हें तन में ।
आत्मा को भी संतुष्टि मिलेगी ,
आशाएं जगेंगी तेरे ये मन में ।।
फिर से तन ताजगी आएगी ,
काम करोगे फिर तू मन से ।
ठंढी हमें है बहुत ही सताती ,
बचाव न होता कभी धन से ।।
आज बहुत है अधिक सर्दी ,
बचाकर करना होगा काम ।
सर्दी लगे तो आग जला लो ,
सर्दी का होगा काम तमाम ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण ) बिहार ।
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