अटल जी
'चौराहे पर लुटता चीरप्यादे से पीट गया वजीर
चलूँ आखिरी चाल
कि बाजी छोड
विरक्ति रचाँऊ मैं
राह कौन सी जाँऊ मैं?'
धर्मयुग में प्रकाशित
आपका आत्म चिंतन
मंथन, यथार्थ से साक्षात्कार,
स्वीकरोक्ति
मेरे हृदय में
आज भी जीवित है।
आपके प्रति
मेरे सम्मान की सूचक है।
आत्म चिंतन के पश्चात
विरक्ति को छोड
बाजी खेलने का निर्णय
प्रतिबिम्बित करता है
आपके दृढ निश्चय को।
मैं आपसे
सदैव प्रेरणा तो पाता
मगर दृढ निश्चय
कभी नही कर पाता।
शायद इसिलिये
भाग्य को मानने लगा
जो मिला
उसी को मुकद्दर जानने लगा।
दाँतों के बीच
कोमल जीभ का रहना,
अच्छे बुरे का
राष्ट्र हित में निर्णय करना
उसे कार्यरूप में लाना,
आपके साहस को
सबने ही माना।
अटल जी
यह आपकी स्तुति नही
अपितु
विवेचना है
मेरे स्तर की।
आज
मैने पुनः सकल्प किया है
आगे बढने का मार्ग
प्रशस्त किया है।
मैं
प्रस्तुत करता हूँ स्वयं को
राष्ट्र हित के लिये
और
दिलाता हूँ भरोसा
ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा
बनेगी जीवन लक्ष्य
तथा राष्ट्र सेवा।
अ कीर्तिवर्धन
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