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'ख़ामोशी'

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'ख़ामोशी'

यारों ख़ामोशी मंच की मिरी जान लिए लेती,
इस गुलशन को फ़िर गुलज़ार करना होगा।


ये मंच तुम्हारा है, तुम ही हो इसके बागवां,
तुम्हारे बिना है यह कितना सूना और बेजां।


ये मंच तो भावों और आवाज़ों का घर है,
इसमें ख़ामोशी का कोई ठिकाना नहीं है।


तुम अपनी रचनाओं से इसे भर दो,
इसकी ख़ामोशी-सन्नाटों को तोड़ दो।


अपने शब्दों से इसे सजा दो,
‌ इसका शानो-शौकत बढ़ा दो।


अपनी रचनाओं को लेकर आओ,
इस मंच को फिर से ज़िन्दा करो।


आओ मिलकर इस मंच को जीवंत बनाएं,
अब हम इसकी ख़ामोशी को दूर भगायें।

पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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