नये पहाड़ों के दिनआने वाले है ं।

नये पहाड़ों के दिनआने वाले है ं।

डॉ रामकृष्ण मिश्र 
नये पहाड़ों के दिनआने वाले है ं।
बहके मंसूवे शहरी अरमानों के
टुकड़े- टुकड़े हुए, अजीर्ण कमानों के
साकल की अलगनी लरकने वाली है
शुद्ध भैरवी पाखी गाने वाले हैं।।


सूने घर को मिलने वाला है आँगन
अब बरसेगा पानी वाला ही सावन
दीपों की मालाएँ शायद स्नेहिल हों
नयी शािखा के दिये जलाने वाले हैं।।


रंग - विरंगी चादर बहुत पुरानी थी
परियों के सपनों सी भरी कहानी थी।
लेप दिये थे काजल तब बटमारों ने
वे अब‌ सारे चिह्न सजाने वाले हैं ।।

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