ढाई अक्षर का प्यार है

ढाई अक्षर का प्यार है ,

ढाई अक्षर का है राम ।
जहाॅं समाहित हैं दोनों ,
वही होता राम का धाम ।।
प्यार का अर्थ राम है ,
राम का अर्थ है प्यार ।
जीवन में दोनों जरूरत ,
राम प्यार करो स्वीकार ।।
शबरी घर खाई झूठी बेर ,
जटायु धाम पठाया था ।
रावण भ्रात बना मित्र ,
रावण शत्रुरूप पाया था ।।
पाई थी स्नेह ये गिलहरी ,
जगे उसके सौभाग्य हैं ।
हर्षित थी बहुत गिलहरी ,
उंगलियों की आज दाग हैं ।।
ढाई अक्षर में ही कृष्ण हैं ,
कृष्ण भी विष्णु अवतार ।
छलियों हेतु बने थे छली ,
श्रद्धा भक्ति से जिसे प्यार ।।
दुर्योधन का ठुकरा पकवान ,
विदुर घर साग खाया था ।
द्रौपदी लाज बचा कृष्ण ने ,
निज शक्ति दिखाया था ।।
ऋषि शाप से बचाने हेतु ,
द्रौपदी का चावल खाया था ।
पग पग भक्त को बचाने को ,
नेकरूप कृष्ण अपनाया था ।।
प्यार ही हैं राम व कृष्ण ,
राम व कृष्ण हैं ही प्यार ।
तीनों हैं जीवन के ही प्यारे ,
तीनों ही जीवन के आधार ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।।
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