बालों से जो मजदूरी करवाए

बालों से जो मजदूरी करवाए ,

दुष्टों को मिलता इंसाफ कहाॅं ?
पढ़ने वालों से मजदूरी कराए ,
ईश्वर हैं करते उसे माफ कहाॅं ?
बाल मजदूरी है वृहद अपराध ,
बच्चों के जीवन संग अन्याय ।
जिन बच्चों में होता अधिकारी ,
बचपन में ही कराते हैं आय ।।
अनपढ़ होते हैं वैसे माता पिता ,
बच्चों को लेते अनपढ़ पथपर ।
स्वयं भी नहीं चढ़े कभी अपने ,
न चढ़ने देते बच्चों को रथ पर ।।
इनमें ही कोई अधिकारी होता ,
इनमें होता कोई गाॅ़ंधी आजाद ।
इनमें ही कोई नेता भी बनता ,
राष्ट्र को जो कर सकता आबाद ।।
दे रही सरकार निःशुल्क शिक्षा ,
ऊपर से देती है यह छात्रवृत्ति ।
निःशुल्क देती विद्यालय भोजन ,
फिर भी शिक्षा से नहीं है प्रीती ।।
चल रही सरकारी सघन जाॅंच ,
पकड़ने पे जुर्माना या कारावास ।
या होंगी फिर दोनों ही ये लागू ,
अपराधी को हो इसका एहसास।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार।
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