आचार्य चाणक्य ने कहा था
शिक्षा वृद्ध संवाद होती है अर्थात शिक्षा मे प्राचीन आचार्यो के विचारो व अनुभवो को पढाया जाना चाहिये।
वर्तमान शिक्षा मे प्राचीन आचार्यो के विचारो को नगन्य कर दिया गया। जिसके कारण अनुशासन, संस्कार, संस्कृति और सभ्यता का विनाश हो रहा है। और उनकी जगह यूरोपीय विद्वानो का उल्लेख थोपा जा रहा है। वह यूरोपीय विद्वान जो अपने देश मे हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली का गुणगान करते हैं, जिनके देश मे संस्कृत के पठन पाठन को लगभग अनिवार्य कर दिया गया है।
ऐसा दिखाया जाता है जैसे विज्ञान, इतिहास, राजनीति, गणित, भूगोल, खगोल, जीव विज्ञान सब यूरोप की देन हो। जबकि हमारे संस्कृत ग्रन्थो मे यह सब और इससे अधिक उपलब्ध है।
03 जून 1814 को ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा गवर्नर जनरल लार्ड मोयरा को लिखे पत्र मे कहा गया था---
संस्कृत भाषा में नीति शास्त्र, वनस्पति तथा औषधी शास्त्र ज्योतिर्विज्ञान, गणित, रेखागणित, बीजगणित आदि अनेको ऐसे ग्रन्थ है जो अद्भुत है और जिसकी सहायता से ब्रिटेन विश्व अग्रणी बन सकता है।
ऐसे अनेक तथ्य है जिन पर तिथि अनुसार बताया जा सकता है। क्या हमारे अध्यापको को भारत की उपलब्धियो का पता है जिसे वह बच्चो को बता सकें और बच्चे भारतवासी होने पर अपनी उपलब्धि यो पर गौरवान्वित महसूस कर सकें? शायद नही। कोई भी राष्ट्र और वहाँ के नागरिक तब तक महान नही हो सकते जब तक वह अपने राष्ट्र और उसकी उपलब्धियों पर गौरवान्वित न हो।
0 1,2,3,4,5,6,7,8,9 अंक की खोज भारत की है जो कम्पयूटर के लिये उपयुक्त है और सारी दुनिया ने अपनाया और हम इसे अंग्रेजी गिनती कहते है।
हवाई जहाज के विषय मे हमारे यहाँ संस्कृत मे विमान शास्त्र उपलब्ध है। जिसमे अब से 50-100 वर्ष बाद आने वाले विमानो की तकनीक भी है, और सबसै पहले वर्तमान मे भी महाराष्ट्र के तापडे बन्धुओं ने विमान बनाया था मगर नाम मिला राईट बन्धुओ को।
स्पर्श शास्त्र, वायु शास्त्र, ध्वनि शास्त्र अनेकोनेक ग्रन्थ आज भी हमारे यहाँ है। मगर हम न तो संस्कृत पढना चाहते हैं न ही हमारी शिक्षा नीति मे है।
वह संस्कृत जिसे जर्मनी, इटली, इंग्लैंड आदि अनेको देशो मे शोध केन्द्र बनाकर पढाया जा रहा है।
अगर आप वास्तव मे भारत को विश्व गुरू बनाना तथा अपने बच्चो को सर्वश्रेष्ठ बनाना चाहते हैं तो संस्कृत के महत्व को समझें।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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