बेटियाँ
उड रही हैं बेटियाँ, उस उडान की तरफ,अंजान जिसकी मंजिल, मुकाम की तरफ।
विस्तृत गगन सामने, कोमल पर लिये,
धरा छोड बढ रही, आसमान की तरफ।
है गगन विशाल सामने, सूरज भी जल रहा,
उडने की ललक है, मन्जिल का नही पता।
हों बाज से प़ंख, और वापसी का भान भी,
आगे बढ़ रही बेटियों को, इतना तो दो जता।
आगे बढ़ें बेटियाँ, यह अच्छी बात है,
मंज़िल का पता हो, यह अच्छी बात है।
दायित्व हमारा, संस्कार संस्कृति सिखाना,
नया इतिहास बनायें, यह अच्छी बात है।
अ कीर्ति वर्द्धन
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