अजीब बनाया मोबाइल ने रिश्ता

अजीब बनाया मोबाइल ने रिश्ता ,

जन जन का जीवन किया कैद ।
जीवन का बना है गंभीर बीमारी ,
जिसका इलाज नहीं करता बैद ।।
पड़ी मोबाइल की ऐसी है आदत ,
छिन रहा बच्चों का यह बचपन ।
जीवन कैद मोबाइली पिंजड़े में ,
बचपन जीवन बनता है पचपन ।।
सबके बीच में ही सबसे अलग ,
मोबाइल कर रहा सबको है दूर ।
एक ही साथ बैठकर हर कोई ,
मोबाइल में रहता हर कोई चूर ।।
घर का रिश्ता भी दूर यह करता ,
दूर के रिश्ते तो रहे हैं अब दूर ।
नहीं रहा अब स्वतंत्र यह मानव ,
मोबाइली पिंजड़े से देखता घूर ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार।
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