हनुमानगढ़ी का शाखामृग|
- डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•(पूर्व यू.प्रोफेसर)
हनुमानगढ़ी का शाखामृग चट भगवा लेकर भाग गया।
राम लला रह गए बुलाते,
लखन रह गए भुज फड़काते ,
जनकसुता रह गई देखती चकित मृगी-सी आत्तविस्मया।
राजनीति की कपट-नाटिका,
सत्ता-नटिनी कीर-शाटिका,
"जय जय जय श्रीराम" घोष से दिशा-दिशा विस्फूर्जित विजया।
धन्य हो गया राष्ट्र हमारा,
अद्भुत राम-भक्ति की धारा ,
भारत ने सचमुच त्रिलोक में रच डाला इतिहास है नया ।
" बंचक भगत कहाय राम के,
किंकर कंचन कोह काम के, "
तुलसी ने जो कभी था कहा आज शब्दशः घटित हो गया।
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लखन रह गए भुज फड़काते ,
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"जय जय जय श्रीराम" घोष से दिशा-दिशा विस्फूर्जित विजया।
धन्य हो गया राष्ट्र हमारा,
अद्भुत राम-भक्ति की धारा ,
भारत ने सचमुच त्रिलोक में रच डाला इतिहास है नया ।
" बंचक भगत कहाय राम के,
किंकर कंचन कोह काम के, "
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